Saturday, October 15, 2011

अन्ना जी का मौन व्रत, आखिर क्यों?

आज से अन्ना हजारे मौन व्रत पर बैठ रहे हैं. हर किसी को थोड़ी हैरानी सी हो रही है अचानक ये क्यों हुआ? अभी अन्ना जी को मौन व्रत का निर्णय क्यों लेना पड़ा? लेकिन हमें पिछले कुछ दिनों के घटनाक्रम की विवेचना करने पर बात समझ में आ जाएगी.

अन्ना जी और उनकी टीम के आन्दोलन के पीछे पूरा देश खड़ा हो गया था. समाज के सबसे शोषित व्यक्ति की आँखों में भी अन्ना नामक ज्योति ने आशा की एक किरण जगाई थी, देश-वासियों को (इस काल में) पहली बार (क्रिकेट के अलावा) एक राष्ट्र होने का अहसास जगाया था. हर किसी के दिल में एक भरोसा जगाया था.

लेकिन ये अचानक क्या हुआ? प्रशांत भूषन के एक बयान ने करोड़ों दिलों में अन्ना की टीम पर एक अविश्वास की टीस उभार दी. हम भारतीय सब कुछ बर्दाश्त कर लेते है लेकिन ये घाव जहाँ पर हुआ उसे बर्दाश्त करना मुश्किल था और इस बात का एहसास अन्ना जी को तुरंत हुआ और उनकी प्रतिक्रिया भी हमने सुनी और पढी.

ये अन्ना जी के लिए आत्म-मंथन का दौर है. वे जानते है की 120 करोड़ लोगों के भरोसे के कारण उनपर उतनी ही भारी जिम्मेदारी भी ही है. टीम अन्ना का कोई बयान कम से कम इनदिनों व्यक्तिगत नहीं माना जायेगा. अभी आन्दोलन समाप्त नहीं हुआ है. वे अभी पूरी तरह से सभी की निगाहों में है.

आन्दोलन का स्वरुप आगे कैसा हो, हिसार में उनके रुख से पैदा हुए राजनैतिक हालत एवं इसकी प्रतिक्रियाए तथा प्रशांत भूषन के बयान से उपजा विवाद. ये शायद कुछ ऐसे विषय हैं जिन पर अन्ना जी अपने मौन-व्रत के दौरान चिंतन करेंगे और हमें ये उम्मीद हैं की इस चिंतन के सकारात्मक परिणाम इस देश को प्राप्त होंगे. आखिर उनके अभियान/ आन्दोलन से जुडी है, 120 करोड़ लोगों की, उम्मीदें जिन्दगी की.

Saturday, August 14, 2010

मेरा लहू देश के काम, माँ तुझे प्रणाम - 15 अगस्त 2010

मेरा लहू देश के काम, माँ तुझे प्रणाम - 15 अगस्त 2010
भारत में प्रति वर्ष हजारों लोग रक्त की अनुपलब्धता से मर जाते हैं. दुर्घटना में घायल व्यक्तियों, गर्भवती महिलाओं, रक्त के कैंसर से पीड़ित मरीजों तथा शल्य चिकित्सा से गुजरने वाले मरीजों को रक्त की जरुरत पड़ती है. किन्तु कई बार ब्लड बैंकों में रक्त की कमी तथा स्वैच्छिक रक्त-दाताओं की कमी से ऐसे मरीजों को समय पर रक्त नहीं मिल पाता है जिससे लोगों की जान चली जाती है.
रक्त की इस कमी को दूर करने हेतु अखिल भारतीय मारवाड़ी युवा मंच ने रक्त-दान को राष्ट्रीय कार्यक्रम घोषित किया है, इसी कड़ी में बिहार प्रांतीय मारवाड़ी युवा मंच द्वारा आगामी स्वतंत्रता दिवस १५ अगस्त २०१० को पूरे प्रदेश में अपनी समस्त शाखाओं के माध्यम से, भारत माता को समर्पित रक्त-दान शिविरों का आयोजन किया जा रहा है.
इस रक्त-दान अभियान का नाम "मेरा लहू देश के काम" दिया गया है. अपने देश और देशवासियों से अपने प्रेम को प्रदर्शित करने के इस अदभुत अभियान द्वारा मंच, भारत माता को अपनी सच्ची सलामी पेश करेगा. यह अभियान भारत माता की रक्षा में शहीद होने वाले सैनिकों तथा पुलिस के जवानों को समर्पित किया गया है.
बिहार प्रांतीय मारवाड़ी युवा मंच सभी शाखाओं, युवाओं तथा अन्य स्वयंसेवी संस्थाओं से इस अभियान में पूर्ण सहयोग की अपील करता है.
इस अभियान का उदघाटन श्री नन्द किशोर यादव, माननीय स्वास्थ्य मंत्री, बिहार द्वारा किया जायेगा.

आप भी इस अभियान में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करें -
मेरा लहू देश के काम... माँ तुझे प्रणाम



पटना में रक्तदान शिविर का आयोजन 15 अगस्त 2010 को महाराणा प्रताप भवन, आर्य कुमार रोड (दिनकर चौक के पास), पटना एवं अग्रसेन भवन, चौक (पंजाब नेशनल बैंक के पीछे), पटना सिटी में किया गया है. मारवाड़ी युवा मंच सभी युवाओं से इस अभियान में सहयोग करने की अपील करता है.
===============
संपर्क सूत्र : Anil Kumar Verma, State President, Bihar Prantiya Marwari Yuva Manch, Mob. 9430920713, 9835285596

Saturday, July 24, 2010

बिहार में कोसी फिर से उफान पर, स्थिति गंभीर

बिहार में नदियों के जलस्तर में हो रही लगातार वृद्धि से बाढ़ की स्थिति गंभीर होती जा रही है। शुक्रवार को बाढ़ का पानी शहरी इलाकों व कई गांवों में घुस गया।

पूर्वी बिहार के कोसी व सीमांचल के क्षेत्रों में कोसी, महानंदा, परमान, बकरा और सुरसर नदियों का पानी रोज नए इलाकों में घुस रहा है। अररिया में शुक्रवार को नगर सुरक्षा बांध टूट जाने के कारण शहर के कई वार्डों में परमान नदी का पानी घुस गया। बकरा की बाढ़ से अररिया ब्लॉक के पूर्वी इलाके के एक दर्जन से अधिक गांव अब भी डूबे हुए है।

नदियों के कटाव से पीड़ित सैकड़ों परिवार सरकारी भवन, विद्यालय, स्वास्थ्य केंद्रों में शरण लिए हैं। पूर्णिया में कनकई, महानंदा व परमान नदियां शुक्रवार को लाल निशान पार कर गईं। कोसी से एक लाख 60 हजार 540 क्यूसेक पानी का डिस्चार्ज हो रहा है। कटिहार के प्राणपुर में महानंदा के उफान से दर्जनों गांवों में बाढ़ का पानी प्रवेश कर गया है। कई गांवों का जिला मुख्यालय से संपर्क भंग हो गया।

उत्तर बिहार की नदियों के जलस्तर में भी शुक्रवार को वृद्धि जारी रही। गंडक में आई उफान से पश्चिमी चंपारण के योगापट्टी, नौतन व बैरिया ब्लाकों के नदी के किनारे के इलाके में खतरा बढ़ गया है। कोसी नदी का पानी पड़ोसी सुपौल जिले के निर्मली ब्लॉक के दस गांवों में घुस गया है। सिकरहरा मझारी सुरक्षा बांध पर दबाव बना है।

सीतामढ़ी में बागमती व अन्य नदियों के जलस्तर में वृद्धि जारी है। बागमती नदी का पानी कटौझा, ढेंग रेलवे पुल और सोनाखान में डेंजर लेवल को पार कर गया है।

Sunday, January 11, 2009

बिकाऊ हैं बाढ़ पीड़ितों के बेटे

महाजनों, नव-सामंतों के कर्ज तले दबे लोग, अब अपने कलेजे के टुकड़े यानी अपने नन्हे बच्चों का भी सौदा करने लगे हैं. ये सनसनीखेज खुलासा तब हुआ जब सहरसा जिले की पुलिस ने बैद्यनाथपुर चौक से एक साथ १२ अबोध बच्चों के साथ दो बच्चों के सौदागरों को धर दबोचा. ये सभी बच्चे उन लोगो के हैं, जिनका बाढ़ में सब-कुछ तबाह हो गया. न तो उनके पास अपना पेट भरने की व्यवस्था है और न ही बच्चों को जिन्दा रखने के लिए अनाज का एक दाना. ऊपर से महाजनों और नव सामंतो ने अपनी कर्ज वसूली के लिए इनके ऊपर डंडा चलाना शुरू कर दिया है. महाजनों के डंडे से बचने के लिए बाढ़-पीड़ित अपने बच्चो को दलालों के हाथ बेच रहे हैं. पकड़े गए दलालों ने पुलिस के सामने ये खुलासा किया है की मानव अंगों की तस्करी करने वाले गिरोह बाढ़ पीड़ितों के बच्चों को खरीद कर ले जा रहे हैं. पुलिस कप्तान राजेश कुमार ने बताया की पकड़े गए दो तस्करों से पूछताछ से मानव अंगों की तस्करी करने वाले कई बड़े गिरोहों के बाढ़ प्रभावित इलाकों में होने से सम्बंधित जानकारी मिल सकती है. स्थानीय लोग कहते हैं की बाढ़ में तबाह हो चुके लोगों पर, महाजनों ने ऐसे समय में दबाव बनाया है की वो अपनी जान बचाने के लिए अपने कलेजे के टुकडों का सौदा करने पर मजबूर हैं.

Saturday, December 20, 2008

कोसी की कोख की व्यथा

हम गंगा पुत्र है. हमारी मिट्टी को गंगा और इसकी बहनों का प्यार मिला है. खेती कर हम अपने और अपने परिवारों का पेट पालते हैं, हमें गंगा-कोसी-कमला-गंडक आदि नदियों की मात्रि - छाया मिली है.
माँ कभी-कभी नाराज भी हो जाती है, लेकिन इतनी निर्दयी और निष्ठुर हो जायेगी ऐसा तो कभी सोचा भी नहीं था. माँ ने हमारा घर-द्वार, खेत-खलिहान सब नष्ट कर दिया. आज माँ के आँचल में, खुले मैदानों में तिरपाल और साडी की छत के नीचे हमारी रातें कटती हैं. पेट की आग को देह की ठण्ड ने भुला दिया है. कटीली सर्द हवाएं तो जानलेवा हैं. अब तो अपने घुटनों को पेट तक पूरा समेट कर भी, इस ठण्ड से कोई राहत नहीं मिलती. छोटे-छोटे बच्चों की हालत देखी नहीं जाती. जिन्दगी बोझ की तरह घिसट-घिसट कर उबड़-खाबड़ पगडंडियों पर सरक रही है.
महाभारत काल से आज तक, शायद गंगा पुत्रों की यही नियति है की बाणों से बिंधे हुए शरीर को भी, मौत अपनी इच्छा से नहीं मिलती, उन्हें रोज मर-मर कर जीना पड़ता है.
हाँ, हम तो गंगा-पुत्र हैं.

- अनिल वर्मा

Monday, December 15, 2008

अभी कई मंजिलें तय करनी हैं

पिछली पोस्ट में अनिल जी ने जो दास्तान सुनाई है मेरे विचार से ये दास्तान सिर्फ़ रमेश की नहीं, उन लाखों बाढ़ पीड़ितों की है, जिनका सर्वस्व कोसी ने छीन लिया. मारवाड़ी युवा मंच ने ठण्ड से कांपती इनकी बेबसी को अपनी सेवा की गर्माहट दी है. हमारे संसाधन और फंड सीमित हैं, फ़िर भी हमने हजारों कम्बल बाँटें हैं. ३००० से अधिक परिवारों को "घर वापसी किट" बाँटें हैं. इन किट्स में एक परिवार की जरुरत के सारे सामान दिए गए हैं, लगभग ५५ लाख की लागत से संपन्न हुआ यह प्रोजेक्ट, हमारे महत्वाकांक्षी पुनर्वास प्रोजेक्ट की सफलता का प्रथम सोपान है. अभी कई मंजिलें तय करनी हैं तथा कई लक्ष्य पाने हैं. मानवता की सेवा के इस व्रत में युवा मंच साथियों, हमारे समस्त सहयोगियों और दान-दाताओं का सहयोग हमें उदारतापूर्वक प्राप्त हुआ है और हमें विश्वास है की सबके सहयोग से हम उजड़े हुए घरों को फ़िर से बसा कर, फ़िर से जगायेंगे - उम्मीदें जिन्दगी की
- जगदीश चंद्र मिश्र "पप्पू"

Thursday, December 11, 2008

कोसी के कछार पर अब ठण्ड से कंपकपी

बाढ़ के बाद बिहार :
खुले आकाश तले ये सर्द रातें कैसे कटेगी? कोसी क्षेत्र के लाखों बाढ़ पीडितों के मन में अब यह नया सवाल कौंधने लगा है. वे इस अहसास से ही सिहर रहे है. बाढ़ ने घर-मकान, दूकान-सामान, खेत-खलिहान सब बर्बाद कर दिया. और अब ठण्ड की मार. जब तन ढकने के लिए कपड़े न हों ऐसे में गरम कपड़ा कहाँ से लायें. त्रिवेणीगंज, मधेपुरा, फोरबिसगंज, सहरसा, मुरलीगंज, प्रतापगंज आदि बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों के सामने आज यह सबसे बड़ा सवाल मुह बाये खड़ा है. कैसे कटेगी ये सर्द ठिठुरती हुई रातें? अब तो न सरकार कहीं दिखाई दे रही है और न ही विपक्षी दल.

अन्य क्षेत्रों की तुलना में कोसी की भौगोलिक संरचना में भी फर्क है - यह चारों ओर से खुला है. नदी के किनारे बसेरा है. हवाएं सीधी चोट करती है. कहीं कोई रुकावट नहीं. सर्द हवाएं हड्डियाँ तक कंपा देती है. मुरलीगंज के रमेश कहते है - आधी रोटी खाकर किसी तरह रातें गुजरते है, लेकिन इस ठण्ड से बचना तो नामुमकिन लग रहा है.