Wednesday, November 19, 2008

बाढ़ राहत अभियान से पुनर्वास कार्यक्रम तक - ३ महीनो का सफर

अनिल वर्मा, १८ नवम्बर २००८, पटना सिटी.
प्रलय.. विनाश.. तबाही.. लोगो की चीख पुकार.. डूबते लोग.. तैरती लाशें.. और अंत में गहरा सन्नाटा.. जिसे रह-रह कर सुख चुके आंसुओ के साथ अभागों का क्रंदन ही तोड़ता था. एक युग की तरह समाप्त हुए इस दौर में एक-एक पल बरसो की तरह प्रतीत होते थे.

आज उस त्रासदी को घटित हुए ३ महीने पूरे हुए जिसकी गूँज विधवाओ के विलाप और बच्चो की सिस्कारियों के रूप में आज भी प्रतिध्वनित होती है.
काफ़ी कुछ देखा जाना और महसूस किया पिछले ३ महीनो में. लोगो को... जो बेबस और लाचार थे, और उनको भी जो इनकी बेबसी को अपनी खुशनसीबी मान रहे थे. कुछ ऐसे थे जो इनकी सेवा करते हुए न्योछावर हो रहे थे .. धन्य मान रहे थे की कुछ काम तो आ सके .. उसके बाद भी अफ़सोस की ओह कुछ भी तो न कर सके .. काश और कर पाते.
और हाँ ऐसे लोगो को भी देखा जिन्हें ये अफ़सोस था की अरे इस सारी कवायद से हमें कितना फायदा हुआ.. इन्हे अफ़सोस था की उन अभागों के आंसू पोंछने में उनका नाम क्यो नही हुआ.. ये और चाहे कुछ ना करते, एक रुमाल तो दे ही सकते थे और ढोल पीट सकते थे.. मीडिया और समाज में की देखो ये जो आंसुओ से भींगा हुआ रुमाल है ये हमने अर्रेंज करवाया था.. इसको निचोडो.. अरे देखो-देखो कितने आंसू है. इनको पोंछने का क्रेडिट हमें जाता है.. हर आंसू का हिसाब वसूलना है. आओ एक फोटो हो जाए इस रुमाल के साथ.. क्लिक . लो जी हो गयी समाज सेवा.
आप पूछेंगे.. बहुत नाराज हो भाई.. हाँ हूँ.. भड़ास निकाली है. इस ब्लॉग में ये सब क्यो लिखा? क्योकि यहाँ लिखना जरुरी था. किंतु क्षमा करें इसका उत्तर या इस बारे में किसी भी प्रश्न का कोई जवाब मुझसे कभी नही मिलेगा. मन हल्का हुआ आइये अब कुछ और भी बातें करें.
बाढ़ राहत अभियान को हम उन बातों के लिए नही याद रखेंगे जो ऊपर लिखी है क्योकि इस बारे में ज्यादा लोग नही जानते. ये लडाई तो मानसिक रूप से लड़ी जा रही थी.
धरातल पर तो शौर्य की गाथाएं लिखी गयीं. यहाँ पराक्रम दिखाने को हल्दीघाटी का मैदान तो नही था लेकिन कोसी के कोप में डूबा एक बड़ा भू-भाग था जिसने तबाही के मंजर पर हौंसलों की इबारतों को खडा होते देखा. नमन है साथियों आप भीष्म है और आप ही कृष्ण भी.
आज के दौर में जब लोग अस्पताल के सामने बेहोश पड़े आदमी को भी अन्दर नही ले जाना चाहते क्योकि उन्हें ऑफिस में देर हो जायेगी.. या यह उनकी जवाबदेही नही है.
ऐसे में, आप सबो ने सेवा की ऐसी मिसाल पेश की है जिसके बारे में लोग बरसों तक चर्चे करेंगे. .. कम से कम वो तो करेंगे ही.. जिन बेबसों के लिए आपने अपने व्यापार, व्यवसाय और परिवार का त्याग किया. नेताओ, मीडिया और ...... का सर्टिफिकेट चाहिए किसे?
बेमिसाल ... शाबास .. शाबास.
अब आगे क्या?
हूँ.. .... करने को तो काफ़ी कुछ है. पुनर्वास प्रोजेक्ट हम सबों ने फाईनल किया था ... करेंगे भी .. प्रांत के पास अर्थाभाव है. लेकिन ये तो पहले भी था तब भी तो काम हुआ ही. हमें भरोसा है हमारी लीडर पर.. जब यहाँ तक पहुंचे है तो इस मंजिल को भी पा लेंगे. हमारी लीडर के बारे में बड़ी बात ये है की उनका ह्रदय माँ की तरह कोमल हो लेकिन उनके इरादे फौलाद की तरह मजबूत होते है. .. और जरुर करेंगे भाई.. समाज के लिए करना है.. समाज जरुर सहयोग करेगा.
जगदीश जी, जिन्हें हम प्यार से पप्पू भइया कहते है उनकी चाचीजी का स्वर्गवास हो गया. इस वजह से यह प्रोजेक्ट दस-बारह दिनों के लिए विलंबित हो गया है अन्यथा छठ पर्व के बाद हम जोर-शोर से इस प्रोजेक्ट में लगने ही वाले थे. पप्पू भइया एक-दो दिनों में फ्री हो जायेंगे और पुनः पूरी टीम निकल पड़ेगी उसी सफर पर जिसकी शुरुआत तो हमें पता होती है, किंतु अंत नही. गजब अहसास है... सोचकर ही .. शरीर ऊर्जा से भर उठता है.
रह-रह कर फंड की चिंता होती है किंतु भरोसा है .. पप्पू भइया है न .. सरिता भाभी - आनंद भइया है ना .. वो लोग देख लेंगे. पहले भी इन लोगो ने सब कुछ संभाला था. आगे भी इन पर ही सारी जिम्मेदारी है.
और अंत में धन्यवाद ... आज के कर्ण और भामाशाहों का जिन्होंने मानवता की सेवा में अपना खजाना खोल दिया अन्यथा ये सब कुछ हम सबों के बस का था क्या?

- अनिल वर्मा
मारवाडी युवा मंच, बिहार का एक कार्यकर्ता

1 comment:

  1. anil ji
    aap sabhi ko meri shubhkamnaayen.
    shambhu choudhary
    kolkata
    0-9831082737

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